1,246 bytes added,
14:38, 28 जनवरी 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा राजवंशी
|अनुवादक=
|संग्रह=कंगारूओं के देश में / रेखा राजवंशी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
सोचा किसी को
फ़ोन मिलाऊँ
बात करके ही
मन बहलाऊँ ।
क्या किसी मित्र से
गपशप लगाऊँ?
नहीं
शायद सो रही हो
अच्छा यही है
उसे न जगाऊँ ।
क्या किसी अजनबी को
सोते से उठाऊँ
कुछ देर यूं ही बतियाऊँ
नहीं-नहीं
अजनबी तो अजनबी है
क्या कहूँ, क्या बतलाऊँ?
चलो
माँ से बात करूँ
फिर बच्ची बन इठलाऊँ
नहीं, छोड़ो भी
उसे क्यों सताऊँ?
अच्छा यही है
बत्तियां बुझा दूं
और सो जाऊं
कंगारूओं के देश में
नींद में खो जाऊं ।
</poem>