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बदलते बच्चे / रेखा राजवंशी

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|संग्रह=कंगारूओं के देश में / रेखा राजवंशी
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<poem>
आकाश के बादल
विविध आकार लेते हैं
रात के तारे
अनगिन रूप बदलते हैं
शाम के झुटपुटे में
चन्दा मामा भी आता है
साथ में चरखा कातती
बुढ़िया दादी भी लाता है
जुगनू अँधेरे में थाम लालटेन
जाने किसे ढूँढने आता है
पर उसे देख कोई बच्चा
ताली नहीं बजाता है
जाने किसकी प्रतीक्षा में
रात-रानी सुगंध फैलाती है
जाने किसे रिझाने को
कोयल गीत गाती है
और किसी को न पाकर
उदास हो जाती है ।

कमरे के अन्दर कोने में
टेबल लैम्प जलते रहते हैं
और आजकल के बच्चे
अपने जीवन में उलझे रहते हैं
चलता रहता है घर में
टी वी, वीडियो गेम या कम्प्यूटर
होता रहता है होमवर्क
बैठा रहता है ट्यूटर
इन्द्रधनुष के रंग
देखते नहीं. बाहर जाकर
बच्चे वाकई बदल गए हैं
इक्कीसवीं सदी में आकर ।
</poem>