जिधर नज़र जाती रही, नफरत बैठी द्वार।
दुनिया पीड़ित हो रही, करलो केवल प्यार।
165रोम -0रोम में नित जगे, सौरभ औ संगीत।चन्द्रकला सी सदा बढ़े, तेरी-मेरी प्रीत।166सागर -सी गहरा रही, तेरी पावन प्रीत।यह जग बीहड़ बन बना, छोड़ न जाना मीत।167नाम- सुमरनी नित जपूँ, बस तेरा ही नाम।तुम मुझमें घट -घट बसो,नहीं और से काम।168मुझे कण्ठ से बाँध लो, जैसे मधुरिम गीत।आएँ जो तूफान भी, छोड़ न जाना मीत।169तेरे अधरों पर रहूँ, जैसे वंशी- तान।सदा हाथ में हाथ हो, कुछ भी कहे जहान। '''714-2-22'''