भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सदस्य वार्ता:Lalit Kumar

43 bytes added, 13:16, 13 अप्रैल 2008
== मेरी फालतू तारीफ़ मत करो ==
कुछ करिये!...पर मैं कि कित्ता सी? मैंने "पहले से मौजूद सामग्री की प्रूफ़-रीडिंग में महत्वपूर्ण भूमिका" निभा डाली और मुझे मालूम ही नहीं? मैं जो कविताएँ पड़ता हूँ, उनमें हिज्जों की कोई ग़लती दिखे तो ठीक करके ऐडिट समरी में "हिज्जे ठीक किए" डाल देता हूँ, जो कि मैंने मुट्ठी भर कविताओं में किया है। कहीं समरी में "प्रूफ़रीड किया" डाला है, वो उनमें जो मैंने ही पहले टाइप की थी, और जल्दबाज़ी मे (आलस के साथ) छपाई का टंकाई से मिलान कराने की ज़हमत नहीं उठाई। तिस पर जब दुबारा पन्ने में बदलाव करता तो इस मुगालता से "प्रूफ़रीड किया है" लिखता कि मैं ज्ञानपीठ वालों से ज़्यादा अच्छा प्रूफ़रीडर हूँ। वो ऐसे गधे हैं जिनके बारे में बारे में तफ़सील में जानने के लिए [[सदस्य:Hemendrakumarrai|यहाँ पर]] जाइए। सो ये वाक्य तो आप मिटाइए।
मैं जो कविताएँ पड़ता हूँ, उनमें हिज्जों की कोई ग़लती दिखे तो ठीक करके ऐडिट समरी में "हिज्जे ठीक किए" डाल देता हूँ, जो कि मैंने मुट्ठी भर कविताओं में किया है। कहीं समरी में "प्रूफ़रीड किया" डाला है, वो उनमें जो मैंने ही पहले टाइप की थी, और जल्दबाज़ी मे (आलस के साथ) छपाई का टंकाई से मिलान कराने की ज़हमत नहीं उठाई। तिस पर जब दुबारा पन्ने में बदलाव करता तो इस मुगालता से "प्रूफ़रीड किया है" लिखता कि मैं ज्ञानपीठ वालों से ज़्यादा अच्छा प्रूफ़रीडर हूँ। वो ऐसे गधे हैं जिनके बारे में बारे में तफ़सील में जानने के लिए [[सदस्य:Hemendrakumarrai|यहाँ पर]] जाइए। सो ये वाक्य तो आप मिटाइए।
 अफ़सोस की बात है कि अपना कोश इस मामले में फिसड्डी ही है, क्योंकि हम किताब से जस के तस टाइप कर लेते हैं। "कविता कोश में वर्तनी के मानक" बनाना इस बाबत एक अच्छा क़दम हो सकता था, पर इसकी हालत घटिया है। और इसमें भी जो सही बातें लिखी हैं (सही मतलब मैं जिन्हें सही मानता हूँ), उन पर अमल करना और करवाना एक अलग काम है। आप ख़ुद इस पर अमल नहीं करते वर्ना '''ये या ए''' वाले नियम के मुताबिक ''कुछ करिये!'' की जगह ''कुछ करिए!'' होता।(इस नियम से मैं सहमत हूँ, वजह ये कि ''यी'' या ''ये'' बोलते वक़्त ज़बान ऊपर रुक जाती है और उच्चारण कठिन मालूम होता है और पर ये नियम भी अधूरा ही है, ''नयी'' को भी ''नई'' ही लिखा जाना चाहिए।)   इस पन्ने के पुराने संस्करण में आपने सही/ग़लत वाले सैक्शन में लिखा हुआ था की ''कण्ठ'' ग़लत है और ''कंठ'' सही है, इसको मैंने सही किया था, इस पन्ने का ०३:२५, १६ जुलाई २००७ वाला संस्करण देखिए। पर पता नहीं आप क्यों इसके हक़ में नहीं है, हम कण्ठ लिखे तो वो भी बिल्कुल सही है, और तो और ये तरीक़ा शब्द का, ज़्यादा अच्छी तरह से, उच्चारण दर्शाता है। चंद्रबिंदु का ग़लत इस्तेमाल हिंदी वर्तनी की दुखती रग है। अनुनासिक अक्षर आंशिक तौर पर नाक से उच्चारे जाते हैं, जैसे कि 'म' होंठों और नाक से बोला जाता है। जबकि चंद्रबिंदु की आवाज़ सिर्फ़ नाक से निकालती है। इसलिए बूंद को अगर बूँद लिखा जाता है तो वो बिल्कुल ही ग़लत है भले ही 50000 जगहों पर इसे बूँद लिखा गया हो। प्रूफ़रीडर ये ग़लती करते हैं, ([[सदस्य:Hemendrakumarrai|यहाँ पर ]] वाला लिंक दबाइए। दबाइए)। हमारे तीन बड़े योगदानकर्ता हैं आप, अनिल जी, और प्रतिष्ठा जी। अनिल जी ये ग़लती नहीं करते। आपका आपको मालूम है, और प्रतिष्ठा जी ये ग़लती करती हैं। आप दोनों मिलकर एक-आध महीने में सारी कविताओं में चंद्रबिंदु के इस तरह के ग़लत इस्तेमाल को ठीक कर सकते हैं, एक कविता को ठीक करने में पाँच मिनट से ज़्यादा वक़्त नहीं लगता।
उसके बाद नंबर आता है, नुक्ते के लोप का, याने ख़बर को खबर लिखा जाना। इसकी मुझे चिंता नहीं हैं क्योंकि साहित्य की किताबों में ऐसा नहीं होता। अख़बारों में ऐसा होता है। और अब तो हिंदी न्यूज़ चैनलों, ऐडों में भी नुक्ते को जिला लिया गया है। हम ज के नुक्ते पर कभी ग़लती नहीं करते क्योंकि इसका उच्चारण अलग होता है, हम नुक्ते के लगने से होने वाले फ़र्क़ को समझें तो इसका हल निकल सकता है। इसके अलावा क,ग और ख,फ पर नुक्ता लगता है। (मैं जिन शब्दों को जानता हूँ कि उनमें नुक्ता लगता है तो लगा देता हूँ, मैंने हाल ही में इधर-उधर से उर्दू सीखी है, ज़्यादा नहीं जानता।) उर्दू में क के लिए दो अक्षर होते ک‎ और ق‎, पहले वाले को '''काफ़ या मरकज़ वाला काफ़''' और दूसरे वाले को '''क़ाफ़ या दो नुक्तों वाला क़ाफ़''' कहते हैं। दूसरे वाले की आवाज़ में फ़र्क़ होता है,क को गले से उच्चारा जाता है, अब ज़रा क को गले के और नीचे से बोलिए, ये दूसरा वाला क़ाफ़ या क़ हो गया। उर्दू में ग=گ‎(गाफ़) ,ग़=غ‎(ग़ैन)। ग़ैन को उच्चारना मैं नहीं जानता, पर इतना जानता हूँ कि इसकी आवाज़ अलग होती है। ख और फ पर जो नुक्ता लगाया जाता, (मेरे अंदाज़े से मुझे ठीक से नहीं पता) हिंदी के जैसा बोलो वैसा लिखो के नियम पर नहीं चलता, और शायद उर्दू के हिज्जों की सही पहचान के लिए लगाया जाता है। इस नुक्ते वाली जानकारी को वर्तनी मानक वाले पन्ने पर डाल दीजिए, और उर्दू के जानकारों को पूरा करने को कहिए।
Anonymous user