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सदस्य वार्ता:Lalit Kumar

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उसके बाद नंबर आता है, नुक्ते के लोप का, याने ख़बर को खबर लिखा जाना। इसकी मुझे चिंता नहीं हैं क्योंकि साहित्य की किताबों में ऐसा नहीं होता। अख़बारों में ऐसा होता है। और अब तो हिंदी न्यूज़ चैनलों, ऐडों में भी नुक्ते को जिला लिया गया है। हम ज के नुक्ते पर कभी ग़लती नहीं करते क्योंकि इसका उच्चारण अलग होता है, हम नुक्ते के लगने से होने वाले फ़र्क़ को समझें तो इसका हल निकल सकता है। इसके अलावा क,ग और ख,फ पर नुक्ता लगता है। (मैं जिन शब्दों को जानता हूँ कि उनमें नुक्ता लगता है तो लगा देता हूँ, मैंने हाल ही में इधर-उधर से उर्दू सीखी है, ज़्यादा नहीं जानता।) उर्दू में क के लिए दो अक्षर होते ک‎ और ق‎, पहले वाले को '''काफ़ या मरकज़ वाला काफ़''' और दूसरे वाले को '''क़ाफ़ या दो नुक्तों वाला क़ाफ़''' कहते हैं। दूसरे वाले की आवाज़ में फ़र्क़ होता है,क को गले से उच्चारा जाता है, अब ज़रा क को गले के और नीचे से बोलिए, ये दूसरा वाला क़ाफ़ या क़ हो गया। उर्दू में ग=گ‎(गाफ़) ,ग़=غ‎(ग़ैन)। ग़ैन को उच्चारना मैं नहीं जानता, पर इतना जानता हूँ कि इसकी आवाज़ अलग होती है। ख और फ पर जो नुक्ता लगाया जाता, (मेरे अंदाज़े से मुझे ठीक से नहीं पता) हिंदी के जैसा बोलो वैसा लिखो के नियम पर नहीं चलता, और शायद उर्दू के हिज्जों की सही पहचान के लिए लगाया जाता है। इस नुक्ते वाली जानकारी को वर्तनी मानक वाले पन्ने पर डाल दीजिए, और उर्दू के जानकारों को पूरा करने को कहिए।
 
एक ग़ैर-ज़रूरी बात और, मेरा नाम ग़लत लिखा है, यूँ लिखें: सुमितकुमार कटारिया।
[[सदस्य वार्ता:Sumitkumar kataria|वार्ता]] --[[सदस्य:Sumitkumar kataria|Sumitkumar kataria]] १३:१०, १३ अप्रैल २००८ (UTC)
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