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'''यह कविता ‘ताब्ला पारीसियाँ’ काव्य -शृंखला में इसी ’हंस’ शीर्षकवाली कविता का दूसरा अंश है।'''
पेरिस बदल रहा है ! किन्तु कोई हलचल नहीं मेरी उदासी में !