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{{KKRachna
|रचनाकार=शेखर सिंह मंगलम
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
पेट का ख़ालीपन कोल्हू का बैल है
जो सुबह शाम चलता,
मांस और अतड़ियों को पेरता
आँखों में आभाव की बोझन लावाही सूखती,
बैल बेहद तन्मयता से निचोड़ता
खून, अस्थि, पंजर, मज्जा, भेजा, त्वचा।
एक तंत्र है, पाचनतंत्र
मालिक एंजाइम मगर नेता कहलाता
यह एंजाइम भरा पूरा रहने पर पुचकारता
अभाव में लात मारता लेकिन
फिर भी बैल चलता
और शरीर जीर्ण करता रहता।
बैल तब तक चलता जब तक कि
उसका तंत्र मर नहीं जाता।
सवाल ये है कि यह बैल क्यों है?
</poem>
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पेट का ख़ालीपन कोल्हू का बैल है
जो सुबह शाम चलता,
मांस और अतड़ियों को पेरता
आँखों में आभाव की बोझन लावाही सूखती,
बैल बेहद तन्मयता से निचोड़ता
खून, अस्थि, पंजर, मज्जा, भेजा, त्वचा।
एक तंत्र है, पाचनतंत्र
मालिक एंजाइम मगर नेता कहलाता
यह एंजाइम भरा पूरा रहने पर पुचकारता
अभाव में लात मारता लेकिन
फिर भी बैल चलता
और शरीर जीर्ण करता रहता।
बैल तब तक चलता जब तक कि
उसका तंत्र मर नहीं जाता।
सवाल ये है कि यह बैल क्यों है?
</poem>