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अनाथ मुर्दा / शेखर सिंह मंगलम

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किसी संक्रमित शव से
संवेदनाएं उतना ही भयभीत होती हैं
जितना कि
नौ महीने की गर्भिणी ऊँचाई से
ढह जाने से भय खाती है।

कभी ठोकर खा गर्भिणी
ज़मीन पे (यक-ब-यक) ढुमनिया जाए तो
वह अपनी छोड़ती (साँसें) नहीं अपितु
टटोलती है अपने गर्भ का बच्चा।

कोरोना के यातना-शिविर में
दम तोड़ता हरेक शख़्स
अपनी मृत्यु से उतना नहीं डरता होगा
जितना कि
बिना कंधे का मुर्दा हो जाने से।

बिना कंधे के मुर्दे को
दुनिया का
ऐतिहासिक अनाथ कहा जाना चाहिए।
</poem>
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