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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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<poem>
1
ज़ख्मों पे भी ज़ख्म खाए हुए हैं
फिर भी हम सब कुछ छुपाए हुए हैं।
दग़ाबाज़ कहते हमें ही बेवफ़ा
उनके गुनाह सिर उठाए हुए हैं ।
2
ठोकरें खाता रहा
गीत मैं गाता रहा
कोई सुनता न मुझे
व्यर्थ इतारता रहा।
3
तुम्हें आज अपने सीने से लगा लूँ मैं।
ताप सभी तेरे सीने में छुपा लूँ मैं।
लगे न किसी की बुरी नज़र कभी तुझको।
बीजमन्त्र पढूँ हर बला से बचा लूँ मैं।

</poem>