भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
सारा का सारा शोर-शराबा
उस सुनसान में
नाकामियाब होता हुआ। हमेशा।
फिर भी बाज नहीं आता
अपनी हरकत से।
घर मेरे साथ हमेशा रहताहै। रहता है। मैं
चाहे जिस सड़क पर, चाहे जहाँ रहूँ।
कभी जेब से