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हेमलेट / बरीस पास्तेरनाक/ अनिल जनविजय
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10:12, 28 मई 2022
है पहले से तय खेल का सारा ख़ाका
इस राह का दिख रहा आख़िरी नाक़ा
मैं अकेला औ’
यहाँ
ढोंग में है
यहाँ
सब डूबा
रंगभूमि नहीं है ये ज़िन्दगी है अजूबा
अनिल जनविजय
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