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मेरे दुख/ बबली गुज्जर

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<poem>
मेरे ये दुख,
मुझे विरासत में तो नही मिले थे

ईश्वर ने ही लिख दी थी मेरे हक में
ज़िन्दगी भर की उदासी, बेबसी और खला..

ये अज़ीयत ही मेरी किस्मत थी
किस्मत से कौन लड़ पाया है भला!

मैं ये जानता था,
नहीं मिलेगी इस राह मंजिल
पर तुम्हारे साथ खातिर चलता रहा..

तुम ये जानती थी,
तुम्हारी याद में सिर्फ दिया ही नहीं
मेरा दिल भी साथ जलता रहा..

ये क्या गहन दुख नहीं था,
कि तुम्हें जी भर न देख पाने की,
..बेबसी लेकर ही.. जीता रहूँ

न बांध पाऊं कोई मन्नत की गांठ
किसी खुदाई दरख़्त के तने से कभी,
..उनकी छांव में बैठकर भी.. तपता रहूं

मेरा दुर्भाग्य देखो,
मैंने तुम्हें पाए बगैर ही खो दिया
मरा हुआ दिल लेकर, कैसे अब ज़िंदा रहूंगा

कभी सोचना बैठकर,
जिन बातों पर, तुम बात करने से भी कतराती हो
मैं उन बातों को आजीवन, कैसे सहता रहूंगा...

</poem>