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तारा आखिरी पहर का(मुक्तक) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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12:59, 6 जुलाई 2022
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हम कैसे कहें कि निशदिन तुम्हारी याद आती है
बसी हो मन-प्राण में ऐसी छवि ज्योति जगाती है
।
गले तुमको लगाया था अभी तक रोम हैं सुरभित
यही थी साध जनमों की तुमने दी जो थाती है।
<poem>
वीरबाला
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