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हम कैसे कहें कि निशदिन तुम्हारी याद आती है
बसी हो मन-प्राण में ऐसी छवि ज्योति जगाती है
गले तुमको लगाया था अभी तक रोम हैं सुरभित
यही थी साध जनमों की तुमने दी जो थाती है।
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