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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
इण रूंख री डाळ
कनला अधपाका फळ नै
कुतरै है टिलोड़ी अबार
अर आपरा बींटका सेती
थरहरतौ म्हैं निराताळ
नीठ पाकूं
के कीकर ई कर म्हारै मांय
गुटली रै आंगै पाक जा थूं

खिरियां पाछै तौ नेहचौ है
किणी न किणी सुगाळ
भूंगौ फोड़ ऊगैला-फूटैला थूं
अर पाछौ कोई फळ रै मिस
किणी पळ
म्हैं आय थारौ खोळ बण जावूंला

नित रोज नख-घात देय जीव
छौ पतवांणता म्हारी देह
मीठा दळ सारू
छौ चूंखीजतौ, चिगळीजतौ म्हैं
जे बीज रै मिस थूं है
तौ म्हैं हूं
अर अपां रै बिचाळै
टिलोड़ी, टूंचां, नख-घात अर लांबी उडीक
है तो है, छौ!
</poem>
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