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Kavita Kosh से
चौखट पर से देखता है आदमी
पहचान नहीं पाता घर को
उस स्त्री स्त्री का जाना जैसे गायब हो जाना थासब जगह बर्बादी बरबादी के निशान छोड़ कर।छोड़कर ।
कितनी क्षति हुई
देख नहीं पा रहा वह आदमी
सिरदर्द और आँसुओं आंसुओं के कारण।कारण ।
सुबह से कानों में गूँज रहा कुछ शोर-सा
वह होश में है या देख रहा है सपना?क्यों क्यों आ रहे हैं विचारहर क्षण समुद्र के बारे में।में ।
जब खिडकियों खिड़कियों पर लगे आले के बीच सेदिखाई नहीं पड़ता ईश्वर ईश्वर का संसार
दूर तक फैला अवसाद
दिखता हैं समुद्र की लंबी लम्बी निर्जनता की तरह।
प्रिय लगती थी वह
इतनी कि प्रिय लगती थी उसकी हर बात
जैसे प्रिय लगती हैं
समुद्र को अपनी लहरें, अपना तट।तट ।
जैसे डुबो देती हैं बाँस को,
उसकी आतमा की गहराई में
जो विचार से भी परे थे
नियति के अथाह से
लहरें उसे उठा लाई थी पास।थीं पास ।
लहरें उसे ऊपर उठाती रहीं, उठाती रहीं
और अंततअन्तत: ले आई आईं उसे एकदम पास।पास ।
और जब उसका यह चले जाना
चबा डालेगा यह अलगाव
उसकी हड्डियों को अवसाद समेत।समेत ।
और आदमी देखता है चारों तरफतरफ़
उस स्त्री ने जाने से पहले
उलट-पलट कर फेंक दिया है
अलमारी की हर चीज चीज़ को।
वह टहलता है इधर-उधर