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Kavita Kosh से
तूफ़ान के बाद लहरें
जैसे डुबो देती हैं बाँस को,
उसकी आतमा आत्मा की गहराई में
चली गई हैं उसकी सारी छवियाँ
और जब उसका यह चले जाना
सम्भव है एक ज़बरदस्ती ज़बरदस्ती हो
चबा डालेगा यह अलगाव
उसकी हड्डियों को अवसाद समेत ।
उस स्त्री ने जाने से पहले
उलट-पलट कर फेंक दिया है
अलमारी की हर चीज़ को।को ।
वह टहलता है इधर-उधर
बिखरे चीथड़ों, कपड़ों के नमूनों को
समेट कर रख देता है अलमारी में।में ।
अधसिले कपड़े पर रखी सुई
चुभ जाती है उसकी अंगुली अँगुली में
उस क्षण उसे दिखती है वह पूरी-की-पूरी
और धीरे-से रो देता है वह।वह ।
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