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मा : पांच / कृष्णकुमार ‘आशु’

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|संग्रह=थार-सप्तक-5 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
जद भी जांवतौ सै'र
ताकती रैंवती
मा री आंख्यां
बारणै कान्नी
म्हारै पाछो आवण तांई।
म्हनै लागतो
कै घर सूं बारै भी
म्हारो कित्तो
ध्यान राखै मा।
</poem>
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