भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कविता भट्ट
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वीणावादिनी माँ सरस्वती के चरणों का ध्यान करते हुए इस काव्य-संग्रह का शीर्षक ‘मन्त्रमुग्धा’ मन में घर कर गया। एक रचना ‘सुनो! मंत्रमुग्ध मीत मेरे’ से प्रेरित यह शीर्षक इस संग्रह की अधिकतर रचनाओं का प्रतिनिधित्व करता है। संग्रह की अधिकतर रचनाएँ पीड़़ा और प्रेम की पराकाष्ठा का शब्दचित्र हैं। निश्चित रूप से जीवन के किसी न किसी मोड़ पर ऐसे भावों से प्रत्येक व्यक्ति दो- चार होता ही है। ‘मन्त्रमुग्धा’ शब्दों के माध्यम से उन्हीं अनुभूतियों को प्रस्तुत करने का एक विनम्र प्रयास है। उल्लेखनीय है कि काव्य का उद्देश्य पाठक के मन तक पहुँचकर उसके भावों को उद्वेलित करना मात्र नहीं अपितु; औषधि के समान मर्म का उपचार भी है। अनेक बार जीवन में ऐसी स्थिति आती है; जब हम अपनी बात किसी से नहीं कह पाते; ऐसे समय में कविता हमें आत्मीयता प्रदान करती है। ऐसी स्थिति में कुछ रचनाओं से हम स्वयं को जुड़ा हुआ पाते हैं और उनमें गहनता से उतरते चले जाते हैं। इस दृष्टिकोण से पाठक ‘मंत्रमुग्धा’ में प्रस्तुत रचनाओं से स्वयं को जुड़ा हुआ अनुभव करेंगें।
स्नेहाकांक्षिणी
'''डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री‘'''</poem>