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07:43, 1 सितम्बर 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार= रश्मि विभा त्रिपाठी
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1
तुमसे ही है स्वर मिला''', अधरों को संगीत।'''
कभी न गाते मैं थकूँ, तुमको हे मनमीत।।
2
मधुर मिलन को हम प्रिये, क्या होंगे मजबूर।
तन- मन एकाकार हैं, कभी न होंगे दूर।।
3
मन से मन का जब बँधे, रिश्ता खूब प्रगाढ़।
लेता प्रेम उछाह यों, ज्यों नदिया में बाढ़।।
4
रूप तुम्हारा देखती, रजनी हो या भोर।
तुम आकरके बस गए, इन आँखों की कोर।।
5
पीर जिया में जो उठे, हो पल में उद्धार।
प्रिये तुम्हारा प्रेम ही, एकमात्र उपचार।।
6
साँसों में आनंद है, जीवन मेरा स्वर्ग।
मन के पन्ने पे रचे, तुमने सुख के सर्ग।।
7
जग का मेला घूमती, पकड़े तेरा हाथ।
हर वैभव से है मुझे, प्यारा तेरा साथ।।
9
मोल नहीं कुछ माँगता, तेरा भाव समर्थ।
मेरे जीवन को दिया, तूने सुन्दर अर्थ।।
10
मन- मरुथल उमड़ी घटा, झरी नेह की बूँद।
आलिंगन में रोज ही, भीगूँ आँखें मूँद।।
11
फूल दुआ के साथ ले, तुम आए हो पास।
मुझको होता ही नहीं, अब दुख का अहसास।।
-0-
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