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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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[[Category:बाल-कविताएँ]]
<poem>
जब से घर में आई बिल्ली
खा गई दूध -मलाई बिल्ली।
ताक लगारे बैठी रहती
बन गई चुश्त सिपाही बिल्ली।

बिल में चूहे दौड़ लगाते
भूख के मारे बैठ न पाते।
बाहर आने से अब डरते
दिनभर उपाय विचारा करते।
फिर भी घबराते रहते हैं
कर न दे कहीं खिंचाई बिल्ली।

हफ़्ते भर में हिम्मत टूटी
बचने की उम्मीद भी छूटी।
सब बोले –‘अब छोड़ो यह घर
दिल से नहीं हट पाता डर ।
कहीं भी गुज़ारा कर लेंगे’
सुन मन में मुस्काई बिल्ली।
-0-
</poem>