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'''1110'''
दूर, बहुत दूर तुम रहते हो, हर साँस के साथ हम पुकारा करें ।
पास, बहुत पास जो आते रहे, उम्रभर उनसे सिर्फ़ किनारा करें।
न खोकरके रोएँ, न पाकर हँसे, दाँव ज़िन्दगी का यों ही हारा करें।
-0-29-4-81
'''1211'''
अब सोचा है हम खुद को ही सज़ा देंगे
तुम्हारे आने तक अपनी हस्ती भी मिटा देंगे।
ख़ुद को ही अपनी तरफ़ से दग़ा देंगे हम।
-0-13-05-1981 ( गल्प भारती अक्तु-81)
'''1312'''
संकल्प जगें तो पर्वत भी हिल जाया करते हैं,
टूट-टूटकर शिखर धूल में मिलजाया करते हैं।
हथेली पर काँटों की फूल खिल जाया करते हैं ।
-0- गल्प भारती अक्तुबर 81,आकाशवाणी अम्बिकापुर-20-12-99
'''1413'''
मैं अकेला , प्रलत बेला में भी चलता जा रहा
आग की लहरों पर खुश हो उछलता जा रहा ।
है साँस में तूफ़ान प्राणों में उमड़ती बिजलियाँ
धरती के मस्तक का इतिहास बदलता जा रहा ।
'''1514'''
रोम-रोम महका देती , मुस्कान तुम्हारी
बन गई प्राण-डोर, नन्ही-सी जान तुम्हारी ।
सपनों में खोई-खोई -सी उनींदे नयन
हैं खिलते हुए यौवन की पहचान तुम्हारी ।
'''1615'''
आलिंगन की व्याकुलता में खोई बाहें
तपते सीने में और तपन भर देती है
पिघला होगा वक्ष प्यार की ऊष्मा पाकर
होंठों से छूकर सब अपना कर लेती है।
'''1716'''
कौन तोड़े ज़िन्दगी की तन्हा खामोशी
हर मनुष्य भीतर से बहुत परेशान है ।
दिलो- दिमाग़ में गुसा हुआ शैतान है ।
-0-(21-9-1981)
'''1817'''
तन बहुत बार बना है योगी, पर मन योगी हो नहीं पाया ।
जहाँ बँधी कोई डोर नेह की, बस वहीं पर भरमाया।
सुधियों ने दुलराया कितना, लेकरके अपने आँचल में।
छूट गया जब छोर हाथ से,रहे पकरते पकड़ते केवल छाया ।
-0-25-9-1981)
'''1918'''
लेकर तुम्हारी याद किधर जाएँ हम
यह मन होता अब तो कि मर जाएँ हम ।
आँखों में रूप प्यारा भर जाएँ हम ॥
-0-(06-10-1981)
'''2019'''
याद कर सुधियाँ सजल, पलभर कभी रोते नहीं।
दर्द की इस भेंट को, हम उम्रभर ढोते नहीं।