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बचपन - 25 / हरबिन्दर सिंह गिल

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<poem>
एक हवा चल रही है
कहते है वक्त की रफ्तार
बहुत तेजी से बदल रही है।
बच्चे अपने मां-बाप से
कई पीढ़ी जागे निकल गये है।

शायद इस सोच ने ही
बचपन के मूल्यों को
अधर में डालकर छोड़ दिया है।

मैं तो सामान्य भाषा में
यही कह सकता हूँ
वक्त के साथ चलना सीखो।

बच्चे एक दूसरे से आपस में
कितना भी आगे निकल जाएं
यह उनका बड़प्पन होगा।

परंतु अगर वो यह सोचें
मां-बाप हमसे बहुत पीढ़ी पीछे के है
यह विचार
शायद उनको स्वयं ही
जीवन की उस अंधेरी खाई में
गिरा कर छोड़ दें
जहां उनका अपना ही भविष्य न रहे।

वो ये न
कल उन्होंने भी किसी बचपन को
जन्म देकर
दुनिया की दौड़ में है उतरना।

फिर क्या होगा
अगर तुम्हारे अपने बच्चे कहें
मम्मी पापा को
अभी तक चलना भी नहीं आता,
हमारे साथ क्या दौड़ लगाएंगे।
</poem>