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{{KKRachna
|रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल
|अनुवादक=
|संग्रह=बचपन / हरबिन्दर सिंह गिल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
इसका किस तरह प्रयोग करना है
मां-बाप पर छोड़ देता हूँ।
हाँ, भावुकता के अभाव मे
मनुष्य एक मशीन बनकर
रह सकता है
जहाँ उसके हृदय में
अपनापन बहुत कम होगा
वह जीवन को
सिर्फ अपनी चाहतों तक ही
सीमित रख पायेगा।
उससे परे
उसके लिये सब व्यर्थ होगा।
ऐसा व्यक्तित्व मेरी राय से
शायद मां-बाप की ममता की गहराई भी
नापने में चाह न रखे।
वह मानवता को माँ समझने में
कोई अर्थ नही समझेगा।
भावुकता का अर्थ
समय-समय पर अलग-अलग
लगाया जाता है।
इसे ज्यादातर झुठला दिया जाता है
यह कह कर कि
तुम बहुत भावुक हो गए हो।
परंतु इतना सच है
भावुकता और कलाकार का रिश्ता
रीढ़ की हड्डी से
कहीं कम नहीं है।
तो निष्कर्ष यह निकलता है
भावुकता मानव के लिये
शायद जरूरी न हो
परंतु समाज इसके अभाव में
एक निर्जीव बनकर रह जाएगा।
हाँ, प्रश्न उठता है
भावुकता के गलत प्रयोग का।
तभी तो देख रहे हैं
भाषा और धर्म के नाम पर
खून की बहती नदियां
और बँटकर रह जाते हैं, देश।
परंतु भावुकता कहीं
ऐसे संकीर्ण विचारों की कैद में
घिर कर न रह जाए
जरूरत है भावुकता की गहराई को
मानवता रूपी तर्क में उतारकर
विचारों में बदलने की।
देखेंगे ऐसे विचार जीवन को निखारेंगे
समाज को मैला नही होने देंगे
मनुष्य के अपने जमीर का वास भी
भावुकता के घर में ही है।
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=बचपन / हरबिन्दर सिंह गिल
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इसका किस तरह प्रयोग करना है
मां-बाप पर छोड़ देता हूँ।
हाँ, भावुकता के अभाव मे
मनुष्य एक मशीन बनकर
रह सकता है
जहाँ उसके हृदय में
अपनापन बहुत कम होगा
वह जीवन को
सिर्फ अपनी चाहतों तक ही
सीमित रख पायेगा।
उससे परे
उसके लिये सब व्यर्थ होगा।
ऐसा व्यक्तित्व मेरी राय से
शायद मां-बाप की ममता की गहराई भी
नापने में चाह न रखे।
वह मानवता को माँ समझने में
कोई अर्थ नही समझेगा।
भावुकता का अर्थ
समय-समय पर अलग-अलग
लगाया जाता है।
इसे ज्यादातर झुठला दिया जाता है
यह कह कर कि
तुम बहुत भावुक हो गए हो।
परंतु इतना सच है
भावुकता और कलाकार का रिश्ता
रीढ़ की हड्डी से
कहीं कम नहीं है।
तो निष्कर्ष यह निकलता है
भावुकता मानव के लिये
शायद जरूरी न हो
परंतु समाज इसके अभाव में
एक निर्जीव बनकर रह जाएगा।
हाँ, प्रश्न उठता है
भावुकता के गलत प्रयोग का।
तभी तो देख रहे हैं
भाषा और धर्म के नाम पर
खून की बहती नदियां
और बँटकर रह जाते हैं, देश।
परंतु भावुकता कहीं
ऐसे संकीर्ण विचारों की कैद में
घिर कर न रह जाए
जरूरत है भावुकता की गहराई को
मानवता रूपी तर्क में उतारकर
विचारों में बदलने की।
देखेंगे ऐसे विचार जीवन को निखारेंगे
समाज को मैला नही होने देंगे
मनुष्य के अपने जमीर का वास भी
भावुकता के घर में ही है।
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