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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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'''1-रोला'''

औरों पर बोझ बन, जग में जीते नहीं हैं।
सुख का भी अकेले, रस वे पीते नहीं हैं॥
समर्पित तन-मन से, परहित में वे हर समय।
उनके ही त्याग से, यह जग रहता है अभय ।।

'''2-कुण्डलिया'''

नेता अपने देश के , करते बहुत कमाल ।
देश-प्रेम की आड़ में, खूब उड़ाते माल ।
खूब उड़ाते माल, ढोंग सेवा का करते।
पद मिल गया कोई,पेट अपनों का भरते।
झूठे वादे करे, धोखा सभी को देता
अवसरवादी धूर्त्त, भ्रष्ट , कलियुग का नेता।
'''-0-(13-1-1981)'''
</poem>