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Kavita Kosh से
यही धरती तुम्हें थामती है
यही तुम्हें भी खिलाती-पिलाती है
यदि तुम भूल गए गई हों तो
यह भी जान लो —
हम दोनों उसी गीली मिट्टी से बने हैं
हम दोनों को गढ़ा भी है एक ही हाथ ने है
हमें सुखाया-पकाया भी
एक ही सूरज ने अपनी धूप से है