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{{KKRachna
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
|अनुवादक=
|संग्रह=भोर के अधर
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<poem>
सावन ने बाँधी है पायल,
जब से अपने पाँव में
यौवन ने ली है अँगड़ाई,
तब से सारे गाँव में।

मादक मन है किसके बस में,
लगा डूबने धार में।
रूप चला है तोड़ किनारे
बैठ प्यास की नाव में।

सुधियों के नासूर पिराए,
पुरवैया में टीस की
नैनों में मोती तिर आए
पलकों की इस छाँव में।

बिरहिन की कुछ बात न पूछो
डँसती सूनी सेज है
साजन के बिन आँगन सूना
रातें कटें अभाव में।

आलिंगन जन्मों से व्याकुल
दहके अधर पलाश-से
बौछारें भी लगीं जलाने
तन-मन दहे अलाव में।
'''(17-4-86: तीसरी आँख-सितम्बर 86, मधुरिमा-अग-अक्तु-90)'''

</poem>