Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
|अनुवादक=
|संग्रह=भोर के अधर
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
और दिवस की तरह आज
यह दिन भी बीत गया।
थके हुए जीवन का गागर
कुछ तो रीत गया।।

बड़े सवेरे हम आए थे
यहाँ पर खाली हाथ।
दिनभर भटके कंकड़ बीने
बहुत लोग रहे साथ।।
शाम हुई चल दिए अकेले।
संग न मीत गया।।

पीछे मुड़कर हमने देखा
सब जाने-पहचाने
सारे रिश्ते फेंक किनारे
बन बैठे अनजाने
जब हम समझे दुनिया का सच,
तब मन जीत गया।।
'''(19-3-99ः आकाशवाणी अम्बिकापुर 6-6-99, तारिका अक्टूबर 2010)'''

</poem>