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बड़े -बड़े गामा उतरे हैं दंगल में
फंसा हमारा गांव चुनावी दलदल में
बड़े फ़ख्र से कहते थे हम गांव के है
मगर फंसे हैं आज कंटीले जंगल में
 
इसी इलेक्शन ने दो भाई बांट दिए
कभी जो संग में सोते थे इक कंबल में
 
नहीं रहा अब गांव सुकूं देने वाला
बड़ी कठिन ज़िंदगी हुई कोलाहल में
 
तब तलाशते पशु मेले में मुर्रा भैंस
करें सर्च अब ताज़ा मक्खन गूगल में
 
जिसे बनाया था मिलजुल कर वर्षों में
वही हमारा जला आशियां दो पल में
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