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सवाल ये है कभी क्या किसी ने सोचा है
ग़रीब आदमी ही क्यों शिकार होता है
हुआ सबेरा गली में वो लगाता फेरा
दुआ ज़बान पे है , हाथ में कटोरा है
 
भले इन्सान का मुश्किल है गुज़ारा यारो
गधा वो है जो दूसरों का भार ढोता है
 
मदद के नाम पे भी लोग ठगी करते हैं
संभल के पांव बढ़ाना यहां भी धोखा है
 
किसी ने सोच समझकर ये झूठ फैलाया
वही इन्सान काटता है जो वो बोता है
 
मुझे किस्से-कहानियां सुना के भरमाते
न वो गंगा ही अब रही, न वो कठोता है
 
जिसे मैं ख़ैरख़्वाह मान रहा था अपना
उसी ने मेरे भरोसे का गला घोंटा है
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