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जो सच्चा औ खरा हो आग पानी से नहीं डरता
कफ़न बांधे हो जो सर पे तबाही से नहीं डरता
मुनाफ़ा और घाटा सोचना बनियों की है फ़ितरत
उसूलों का पुजारी लाभ हानी से नहीं डरता
 
यहां तो लोग खुद्दारी के पीछे जान दे देते
वहां इक शख़्स देखा जो गुलामी से नहीं डरता
 
ज़मीं जिसका बिछौना हो गगन हो ओढ़ना जिसका
तुम्हारी चमचमाती राजधानी से नहीं डरता
 
मुझे मालूम है कांटो भरा पथ ख़ुद चुना उसने
बहादुर वो किसी भी आततायी से नहीं डरता
 
हमेशा दीन दुखियों की जिसे चिंता सताती हो
ग़मों से लैस अपनी ज़िंदगानी से नहीं डरता
 
बड़ा जो पेड़ होता है वही डरता ज़ियादा है
कोई अंकुर कभी तूफ़ान आंधी से नहीं डरता
</poem>
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