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रात और दिन काम ही कामआराम न भाया है;किसी मशीन केपुर्ज़े-जैसाये जीवन पाया है ।कब जिएअपने लिए हमयाद नहीं पड़ता है;हर पल मेरीयादों में अबकाँटे-सा गड़ता है ।इन काँटों को सेज बनाकरमन को बहलाया है ।जिधर गएआरोप बहुत –से स्वागत करनेआए;खाली आँचल देख हमाराभरने कोअकुलाए ।आँचल भरने पर दिल- दरिया ये भर-भर आया है ।खाली हाथ चले थे घर सेआज भी खाली हाथ ;शाम हो गई चले गए सबछोड़-छोड़कर साथ;दिन-रात जिया-है रिश्तों को फिर धोखा खाया है ।
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