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हथेली बिछाई तुमने / कविता भट्ट

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<poem>
हथेली बिछाई तुमने,
मैंने लहरा के डग भरे।
सपनों की झूम खेती,
अब करने को पग धरे।

कल्पतरु- से तुम खड़े,
अपराजिता हो उर मिली।
मंद - मंद मुस्काती हुई-
पुष्पित सुरभित हर कली।

संजीवनी- सा संग हुआ,
मिलन समय से है परे।
नयन मूँदे क्षण पड़े हैं -
अधर- अधर पर धरे।
'''
तुम घुल गए हो मुझमें,'''
'''मृदु- पहाड़ी संगीत- से।'''
'''नदी -सी उन्मुक्त बहती'''
'''प्रवाह है तुम्हारी- प्रीत से।'''
-0- (24-12-2022)

</poem>