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स्वागत /सादी युसुफ़

222 bytes added, 10:51, 13 नवम्बर 2008
कैक्टस पर गिरती है बर्फ। <br /> फिर एक पुकार और एक कहवाघर। <br /> एक संत का लबादा जिसे चीथड़ा कर चुके भेड़िए। <br /> बढ़िया चमड़े के बने जूते। <br />हादरामूट के किनारों पर किस तरह कांपते हैं कछुए? <br />नदी की गहराईयों से कराहता है चांद... और एक लड़की चिल्लाती है खुशी में। <br /> मुझे नहीं है जरूरत किसी गोली की। <br /> इस दुनिया में मेरी इकलौती तकदीर मेरे पीठ पीछे की दीवार है। <br />शाहराज़ूर के चरागाहों में किस कदर हरी है घास ! <br /> मैंने देखी एक लटकती हुई रस्सी। यूसुफ़ कहां है ? <br /> मैं टिम्बकटू की बाजारों में था...और मशक्कत कर रहा था। <br /> एक रात एक जहाज़ हमें ले गया जिबूती के उथले पानी के पार...<br><br>
मोगादीशू उछालता है भेड़ का गोश्त शार्क मछलियों की तरफ़। <br /> मेरा कोई गन्तव्य नहीं है। <br /> मेरे पास एक बिल्ली है जिसने कुछ दिनों से मुझे मेरे जीवन की दास्तान बतानी शुरू की है। <br /> लगातार दूर जाती अमरता तुमने भी क्यों दगा किया मेरे साथ? <br /> इस दोपहर मैं सीखूंगा फूलों की पशुता की चुस्कियां लेना। <br /> दगा का स्वाद कैसा होता है? <br />एक बार मैं घूमा किया अपने गति के साथ। <br /> सैनिकों की रेलगाड़ियां चलती जाती हैं ... चलती जा रही हैं। <br /> चलती जाती हैं। चलती जा रही हैं। <br /> चलती जाती हैं। मास्को की बर्फ मेरे आंसुओं को गरमाती है। <br /> ठहरते और फिर सफर पर निकलते चरवाहों में नहीं कोई गुण... <br />अपनी उंगली के एक इशारे से शहर मिटा देते हैं गांवों को। <br /> मोटे चावल के आटे से बनी है मेरी रोटी और राख है मेरी मछली पर नमक। <br /><br /> लड़कियों की डोरमैट्री में आज रात उसका प्रेमी हो पाने की कोई संभावना नहीं मेरे वास्ते। <br />नहीं ... शनिवार को वह अपना दरवाजा मेरे लिए बंद कर देती है। <br /> मैं जला दूंगा सारे काग़जों को। पुलिसवाला आ सकता है। <br /> रात की रेलगाड़ी में बेड़ियों में भी मेरी आंख लग गई। <br /> लकड़ी की सीट मेरा वह जहाज थी जो दुर्घटना का शिकार हुआ। <br /> बंदरगाह के शराबखाने वाली लड़की वो तुम्हारा नाम जप रह हैं। <br /> लौट आए हैं हीरों की खोज में निकले अजनबी। <br /> हैज़ा के पत्थरों पर आराम कर रहे हैं हमैर के बाज़। <br /> एक दफ़ा मैंने करीब करीब पा लिया था शिशु चंद्रमा को अपनी हथेलियों में। <br /> लोगों को क्यों छोड़कर जाना पड़ा पार्क? <br /> मुझे नहीं चाहिए तुम्हारा हाथ। मत फेंको धज्जियों से बनी अपनी रस्सी मेरी तरफ़। <br /> आज मैंने खोज ली है एक और मूसलधार बारिश। <br /> स्वागत है जीवन में... स्वागत मेरी दूसरी वाली प्रेयसी।<br><br>
अम्मान<br>
रचनाकाल : 23 मार्च 1997
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