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बरसाते रहो / कविता भट्ट

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मधुमास तुम आते रहो...
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/ ''''मधुमाह आवत्तु (पाली अनुवाद)''''''रचनाकार :डॉ॰ कविता भट्ट: शैलपुत्रीय:''''''अनुवादक:राम प्रताप सिंह'''
अब्बे सरधा पीती मम,किच्च नेहु बरसत्तु
मनस्सरणी आकुलता,विदूरे समुद्दा
नयनपच्छेन मग्गकांकर अपनयत्तु
'''मधुमाह आवत्तु'''
जगते सत्पीती नाम,कोपी अस्स न करत्तु
आसञ्दधन कप्पनेन सह सुरञ् मेलयत्तु।
 '''मधुमाह आवन्तु।'''
गेहेदं तव नात्थी मम,बिरथा वाद-विवाद
चत्तारि दिवसेन सत्थ,पिरित्तिपथे चलन्तु
'''मधुमाह आवन्तु'''
ओधुक्किता उपवेत्थाकतम तोम परियोधनप्परि पराच्छादन ।
कालञ् कालञ् भोत्तु हसती अपनयत्तु अब्ब मदञ् ।
'''मधुमाह आवत्तु'''
</poem>