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|रचनाकार=प्रमोद शर्मा 'असर'
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<poem>
ज़माने पेश मत आ बेरुख़ी से,
जुदा फ़ितरत है अपनी तो सभी से।

नशा दौलत न कुर्सी का हो जिसको,
अभी मिलना है ऐसे आदमी से।

अलग ही शख़्शियत है तेरी वरना,
कहाँ खुलते हैं हम इक अजनबी से।

तेरा वादा वफ़ा वो कैसे होगा,
किया तूने जो हमसे बेदिली से।

जहां में जिनका हो किरदार रौशन,
नहीं डरते कभी वो तीरगी से।

कहें कैसा लगा नहले पे दहला,
हुनर सीखा है हमने आप ही से।

मिले धोखे भले ही हर क़दम पर,
'असर' शिकवा नहीं है ज़िन्दगी से।
</poem>