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|रचनाकार=प्रमोद शर्मा 'असर'
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<poem>
दाग़ दामन पे किया है न गवारा हमने ।
जो हुआ कर लिया मंज़ूर ख़सारा हमने ।।

तुझसे रखने को भरम अपनी शनासाई का ,
बेसबब तुझको कई बार पुकारा हमने ।

ख़ुद को बहलाया, वो रस्ते में हैं, आते होंगे,
यूँ भी अक्सर शब-ए-फ़ुर्कत को गुज़ारा हमने ।

छोड़ जाना है तो इल्ज़ाम लगा दो कुछ भी,
साँस - दर - साँस भला चाहा तुम्हारा हमने ।

पास रक्खा नहीं रिश्तों का 'असर' जिसने भी,
मुड़ के देखा नहीं फिर उसको दुबारा हमने ।
</poem>