भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद शर्मा 'असर' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमोद शर्मा 'असर'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मैं जो तुझसे मिला नहीं होता,
ये मेरा मर्तबा नहीं होता।
जो मुक़द्दर में था मिला तुझको,
सबको सब कुछ अता नहीं होता।
छीन मत हक़ तू अपने छोटों का,
आदमी यूँ बड़ा नहीं होता ।
लोग यूँ तो गले लगाते हैं,
प्यार दिल में ज़रा नहीं होता ।
साथ देता जो तू, सफ़र फिर ये,
इतना मुश्किल भरा नहीं होता ।
हाल पढ़ लेता माँ के चेहरे से,
वो जो लिक्खा-पढ़ा नहीं होता ।
ग़फ़लतों में 'असर' न होता तो,
तीर उसका ख़ता नहीं होता ।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमोद शर्मा 'असर'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मैं जो तुझसे मिला नहीं होता,
ये मेरा मर्तबा नहीं होता।
जो मुक़द्दर में था मिला तुझको,
सबको सब कुछ अता नहीं होता।
छीन मत हक़ तू अपने छोटों का,
आदमी यूँ बड़ा नहीं होता ।
लोग यूँ तो गले लगाते हैं,
प्यार दिल में ज़रा नहीं होता ।
साथ देता जो तू, सफ़र फिर ये,
इतना मुश्किल भरा नहीं होता ।
हाल पढ़ लेता माँ के चेहरे से,
वो जो लिक्खा-पढ़ा नहीं होता ।
ग़फ़लतों में 'असर' न होता तो,
तीर उसका ख़ता नहीं होता ।
</poem>