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<poem>
मैंने
बहुत लोगों से सुना है
कि जब हम छोटे थे
बारिश होती थी
तो
पूरी छत टपकती थी
हम बाल्टी, भगोने लगाते थे
पंलंग के नीचे रात बिताते थे
सो नहीं पाते थे

बचपन को बहुत दूर
छोड़ देने के बाद
आज
मेरे सर पर जो
छत थी,
वो छत टूट गई है
जाने कहाँ से
उफनते चले आ रहे हैं
बरसाती नाले
लबालब
बाल्टियों में ये तूफान समाने वाला नहीं है

काश!
'''मैं एक छोटी बच्ची होती'''
तो
एक कागज की नाव बनाकर
उसपर बैठकरके
उस पार निकल जाती
या फिर मेरे बड़े होने तक
छत न टूटती।

</poem>