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Kavita Kosh से
ढूंढती हूं निर्झर।<br>
पूछती हूं नभ धरा से-<br>
क्या नहीं र्त्रतुराज ऋतुराज आया?<br><br>
मैं अग-जग का प्यारा वसंत।<br><br>
मेरी स्वप्नों की निधि अनंत,<br>
मैं र्त्रतुओं ऋतुओं में न्यारा वसंत।<br><br>