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पेड़ों के झुरमुट में अलाव के घेरे में, सदियों पुराने दुख-सुख बतलाएँ ।
अन्धेरे की काली दीवार पर जहाँ, नाचती दिख रही हैं नर्तक परछाइयाँ
कहकहे हैं, पागलपन है, लाल सुर्ख़ पताकाओं के नीचे बज रही हैं तुरहियाँ ।
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