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'''1652 में कवि जॉन मिल्टन पूरी तरह से अन्धे हो गए थे। अपनी दृष्टिहीनता के दौरान ही उन्होंने यह कविता लिखी थी, जिसकी पहली पंक्ति थी — ’अपना प्रकाशकाल मैंने कैसे व्यतीत किया’। प्रकाशकाल का अर्थ यहाँ उस समय से है, जब उन्होंने अपनी आँखों की रोशनी खोई नहीं थी और वे देख सकते थे ।'''

कैसे बिताए थे मैंने आलोकमयी दिन, मन में आया यह विचार
अब आधा जीवन गुज़र रहा, इस अन्धेरी लम्बी-चौड़ी दुनिया में
फिर मौत छिपा लेगी हुनर वोह मेरा अकेला, जिसका धुनिया मैं
जो पड़ा हुआ निरर्थक, अगरचे मन मेरा अब भी सेवा को तैयार

'''मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''

'''लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए'''
John Milton

“When I consider how my light is spent,
Ere half my days in this dark world and wide,
And that one talent which is death to hide
Lodged with me useless, though my soul more bent

To serve therewith my Maker, and present
My true account, lest He returning chide;
“Doth God exact day-labor, light denied?”
I fondly ask. But Patience, to prevent

That murmur, soon replies, “God doth not need
Either man’s work or His own gifts. Who best
Bear His mild yoke, they serve Him best. His state
Is kingly: thousands at His bidding speed,

And post o’er land and ocean without rest;
They also serve who only stand and wait.”
</poem>
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