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उस रात अंधेरी मुंबई के फ्लाई ओवर उतरते हुए
मुझे चमकते नजर आए
लाल जुगनुओं के झुण्ड जैसे
जमीन पर उतर आए हों

सच !
पर जुगनू की चमक तो फ़क्क सफ़ेद होती है !

तो क्या मुझे भविष्य का भान हो रहा था !
भविष्य देख-समझ पा रही थी??

आज अँधेरी मुंबई मुझे नक़्शे में लाल ही दिख रहा है
लाल सुर्ख़, रक्त जैसा
भयभीत हूँ
अँधेरी मुंबई वासियों के प्रति
शिवाजी इंटरनेशनल एयरपोर्ट नजदीक ही है
जहाँ सुरक्षा कर्मियों और टैक्सी चालकों ने ढोया है
संक्रमित मनुष्यों को
इसलिए
सफ़ेद जुगनू मुझे
उस रात लाल नजर आये थे
जलबुझ रहे थे.... टिमटिम

मुंबई तुम ठीक रहो
भारत तुम स्वस्थ्य रहो
चले सब कुछ सुचारु रूप से
जुगनुओं तुम फ़क्क सफ़ेद ही उतरो
सपने में सबके
इस महा तांडव करते
संक्रमण से मेरा गरीब देश
उबर जाए.... उबर जाए
</poem>
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