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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनीता सैनी }} {{KKCatKavita}} <poem> प्रेम फ़िक्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=अनीता सैनी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
प्रेम फ़िक्र बहुत करता है
लगता है जैसे-
ख़ुद को समझाता रहता है
कहता है-
"डिसीजन अकेले लेना सीखो
राय माँगना बंद करो
तुम मुझसे बेहतर करती हो।"
दो मिनट का फोन, पाँच बार पूछता है
"तुम ठीक हो?
कोई परेशानी तो नहीं
कुछ चाहिए तो बताना
मैं कुछ इंतज़ाम करता हूँ
और हाँ
व्यस्तता काफ़ी रहती है
क्यों करती हो फोन का इंतजार ?
कहा था न समय मिलते ही करूँगा
अच्छा कुछ दिन काफ़ी व्यस्त हूँ
फील्ड से लौटकर फोन करता हूँ।"
लौटते ही फिर पूछता है
"तुम ठीक हो?"
आवाज़ आती है-“हूँ”
और आप?
फिर आवाज़ आती है- “हूँ ”
</poem>
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|रचनाकार=अनीता सैनी
}}
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प्रेम फ़िक्र बहुत करता है
लगता है जैसे-
ख़ुद को समझाता रहता है
कहता है-
"डिसीजन अकेले लेना सीखो
राय माँगना बंद करो
तुम मुझसे बेहतर करती हो।"
दो मिनट का फोन, पाँच बार पूछता है
"तुम ठीक हो?
कोई परेशानी तो नहीं
कुछ चाहिए तो बताना
मैं कुछ इंतज़ाम करता हूँ
और हाँ
व्यस्तता काफ़ी रहती है
क्यों करती हो फोन का इंतजार ?
कहा था न समय मिलते ही करूँगा
अच्छा कुछ दिन काफ़ी व्यस्त हूँ
फील्ड से लौटकर फोन करता हूँ।"
लौटते ही फिर पूछता है
"तुम ठीक हो?"
आवाज़ आती है-“हूँ”
और आप?
फिर आवाज़ आती है- “हूँ ”
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