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टोह / अनीता सैनी

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स्मृति- पन्नों पर बिखेर गुलाल
हृदय से उन्हें लगाऊँ
जोगन बन खो जाऊँ प्रीत में
रूठें तो फिर-फिर मनाऊँ
साँझ लालिमा-सी सँवरूँ
टूट तारिका-सी लिपटू गलबाँह में
धवल चाँदनी झरे चाँद से
अबीर बन सुख लूटूँ प्रीत छाँह में
एक-एक पन्ने पर वर्षों ठहरूँ
मुँदे द्वार खोल माँडू माँडने
अल्हड़ मानस की टाँगूँ लड़ियाँ
टूटे भावों को बैठूँ साँठने
प्रीत पैर बँधूँ बन पैजनियाँ
थिरक बजूँ पी आँगन में
टोह अंतहीन पारावार-सी
व्याकुल पाखी की अंबर में।
</poem>