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{{KKRachna
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
}}
[[Category:बाल-कविताएँ]]
<poem>
बैठ मुँडेरे बड़े सवेरे
चिड़िया गीत सुनाती है।
सोते रहते सभी घरों में;
लेकिन वह जग जाती है।
नन्हे बच्चे चोंच खोलकर
चींचीं-चींचीं गाते हैं
चिड़िया जो लाकर दे देती
मिल-जुलकर खा जाते हैं।
कभी संग उनको लेजाकर
उड़ना वह सिखलाती है
होती शाम, डूबता सूरज
नभ में घिरता अँधियारा
होते फिर आबाद घोंसले
गूँज उठा उपवन सारा
बैठ डाल पर प्यारी चिड़िया
रुक-रुक लोरी गाती है।
'''(रचना 9 मार्च 1981, अमर उजाला-21-11-1982, घर गृहस्थी मई 85)'''
</poem>
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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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[[Category:बाल-कविताएँ]]
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बैठ मुँडेरे बड़े सवेरे
चिड़िया गीत सुनाती है।
सोते रहते सभी घरों में;
लेकिन वह जग जाती है।
नन्हे बच्चे चोंच खोलकर
चींचीं-चींचीं गाते हैं
चिड़िया जो लाकर दे देती
मिल-जुलकर खा जाते हैं।
कभी संग उनको लेजाकर
उड़ना वह सिखलाती है
होती शाम, डूबता सूरज
नभ में घिरता अँधियारा
होते फिर आबाद घोंसले
गूँज उठा उपवन सारा
बैठ डाल पर प्यारी चिड़िया
रुक-रुक लोरी गाती है।
'''(रचना 9 मार्च 1981, अमर उजाला-21-11-1982, घर गृहस्थी मई 85)'''
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