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हर दिन तो एक जंगल है
दृश्यों में कोई रंग ही नहीं, बेउला !
छोटी-छोटी बातों में भी धैर्य रखना पड़ता है दिखलाओ ।
ये सूरज है कि किरणों का कहर
ज्यों बरछियों ने धावा बोल दिया बोला होधावाफिर उसके धूसर कपड़े भीजीवन को बनाते हैं जंगल ।
उसे याद आते हैं लोग
और यादों की फ़ुनगियाँ
चमकने लगती हैं और गहराई से ।
भला, क्या नाम था उसका,
मेले में मिला वह बौड़म लड़का
बन्दूक ’बन्दूक — निशाना — फूटा गुब्बारा गुब्बारा’ की गुमटी पर ।
और उसका वो चुम्बन
ज्यों सुवर्ण मीन कोई तैर गई थी निखरे जल में,
एक तरंग उठी थी,
एक घाव लगा था ।
शायद माइकेल था उसका नाम
नहीं, नहीं — कुछ बेहतर था —
वह गहरी सांस लेती है
यादों की उड़ती है धूल
खिलने लगते हैं मन में जैसे कनेर के फूल ।
यादें लहराती हैं मन में —
घर झिलमिलाता है कुछ-कुछ नाचता सा
पूरी तरह खुला है सामने का दरवाज़ा
दीवानख़ाने में भर रही है गिरती बर्फ़ ताज़ा
चूल्हे पर चढ़ाती है वह पानी भरा पतीला
स्मृति में डोल रहा है वही बौड़म छैल-छबीला
यादों की गरमी से ज्यों
बर्फ़ की लटकन पिघल जाती है
फिर से जल में बदल वो यूँ ही तिर जाती है ।
stroke a deep breath and
the canary in bloom.
Wavery memory: home
from a dance, the front door