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<poem>
हर दिन तो एक जंगल है, बेउला !दृश्यों में कोई रंग ही नहींहै, बेउला !
छोटी-छोटी बातों में भी धैर्य दिखलाओ ।
फिर इस जीवन से, भला, क्यों न ऊब जाओ ।
ये सूरज है कि किरणों का कहर
ज्यों बरछियों ने बोला हो धावा
फिर उसके धूसर कपड़े भीदोपहरजीवन को बनाते जंगल लावा
उसे याद आते हैं लोग
और यादों की फ़ुनगियाँ
चमकने लगती हैं गहराई से ।
 
भला, क्या नाम था उसका,
मेले में मिला वह बौड़म लड़का
’बन्दूक — निशाना — फूटा गुब्बारा’ की गुमटी पर ।
और उसका वो चुम्बन
ज्यों सुवर्ण मीन कोई तैर गई थी निखरे जल मेंसी भृकुटी पर,
एक तरंग उठी थी,
एक घाव लगा था ।
फिर से जल में बदल वो यूँ ही तिर जाती है ।
बरसों पुरानी बात है ये
पिता छोड़ गए थे उसको
धीरे-धीरे बरस ये बीते
अब मशहूर हो गई है वो
तो ये वादा रहा
कि पैदा नहीं होगा अमन में सहरा कोई
नहीं लगेगा जीवन पर अब पहरा कोई
बहुत पहले आफ़ताब औ’ दरख़्त ने की थी साज़िशज़िन्दगी को बना दिया था पूरी आतिशतब जिससे मन को थोड़ी छाँह मिली थी नाम था उस बौड़म का मियाँ — मौरिस
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
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