गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
ख़्वाब सब के महल बँगले हो गये / डी. एम. मिश्र
9 bytes added
,
13:53, 12 सितम्बर 2023
कौन पहचानेगा मुझको गाँव में
इक ज़माना
वर्षों मुझको
घर से निकले हो गये।
</poem>
Dkspoet
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits