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'''हिंदी में बोलूँ'''जो सोचूँ हिंदी हिन्दी में सोचूँजब बोलूँ हिंदी हिन्दी में बोलूँ
जन्म मिला हिंदी हिन्दी के घर में,हिंदी हिन्दी दृश्य-अदृश्य दिखाए।दिखाए ।
जैसे माँ अपने बच्चे को,
अग-जग की पहचान कराए।
ओझल-ओझल भीतर का सच,
जब खोलूँ हिंदी हिन्दी में खोलूँ।।खोलूँ ।।
निपट मूढ़ हूँ पर हिंदी हिन्दी ने,मुझसे नए गीत रचवाए।रचवाए ।
जैसे स्वयं शारदा माता,
गूँगे से गायन करवाए।करवाए ।
आत्मा के आँसू का अमृत,
जब घोलूँ हिंदी हिन्दी में घोलूँ।।घोलूँ ।।
शब्दों की दुनिया में मैंने,
हिंदी हिन्दी के बल अलख जगाए।जगाए ।
जैसे दीपशिखा के बिरवे
कोई ठंडी ठण्डी रात बिताए।बिताए ।जो कुछ हूँ हिंदी हिन्दी से हूँ मैं,जो हो लूँ हिंदी हिन्दी से हो लूँ।।लूँ ।।
हिंदी हिन्दी सहज क्रांति क्रान्ति की भाषा,यह विप्लव की अकथ कहानी।कहानी ।
मैकाले पर भारतेंदु की
अमर विजय की अमिट निशानी।निशानी ।
शेष गुलामी के दाग़ों को,
फिर धो लूँ हिंदी हिन्दी से धो लूँ।।लूँ ।।
हिंदी हिन्दी के घर फिर-फिर जन्मूँ
जन्मों का क्रम चलता जाए,
हिंदी हिन्दी का इतना ऋण मुझ पर
साँसों-साँसों चुकता जाए
जब जागूँ हिंदी हिन्दी में जागूँजब सो लूँ हिंदी हिन्दी में सो लूँ।।लूँ ।।</poem>
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