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निराली छटा / प्रियंका गुप्ता

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<poem>
चन्दा चमके चम-चम-चम-चम
दिप-दिप करते तारे
अँधियार-_सी रातों में
लगते हैं ये प्यारे
दमक-दमककर सूरज दमके
बादल बरसे घन-घन
कड़क-कड़ककर बिजली चमके
हवा चले है सन-सन
प्रकृति की हर छटा निराली
हर रूप में भाती है
सुख-दुःख में तुम कभी न रुकना
ये हमको सिखलाती है ।
</poem>